UP Justice News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘प्रयागराज में बुलडोज़र एक्शन में गिराये गये घर फ़िर से बनेंगे, यूपी सरकार को लगाई फ़टकार

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नई दिल्ली/प्रयागराज: UP Justice News- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई लोगों के घरों पर बुलडोज़र की कार्यवाही पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त रुख़ अपना लिया है। कोर्ट ने यूपी सरकार की इस बुलडोजर कार्यवाही पर सवाल उठाते हुए प्रभावित लोगों को अपने ख़र्च पर घर दोबारा बनाने की अनुमति दे दी है। हालांकि इसके लिये कुछ शर्तें भी रखी गयी हैं।

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बता दें कि जस्टिस अभय एस०ओक और जस्टिस उज्जल भुइयाँ की बेंच इस मामले की सुनवायी कर रही थी। याचिका कर्ताओं ने कोर्ट के सामने दलील दी थी कि “उनके घरों को गैंगस्टर अतीक़ अहमद से जुड़ा मानकर उनके घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। जबकि अतीक़ से उनका कोई कोई सम्बन्ध नहीं था।” इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “राज्य सरकार बिना उचित प्रक्रिया अपनाये इस प्रकार की कार्यवाही नहीं कर सकती है।  (UP Justice News)

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “अगर याचिकाकर्ता तय समय में अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील दायर करते हैं , और वह स्वीकार हो जाती है तो वे अपने घर फ़िर से बना सकते हैं। लेकिन यदि अपील ख़ारिज़ हो जाती है तो उन्हें अपने ही ख़र्च पर अपने घरों को पुनः गिराना होगा।”

याचिका कर्ताओं ने अपनी याचिका में बताया कि “इलाहाबाद हाईकोर्ट से मामला ख़ारिज होने के बाद उन्होंने सुप्रीमकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।” उन्होंने आरोप लगाया कि “प्रशासन ने उन्हें अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिये बग़ैर ही उनके घर गिरा दिये गये। अधिकारियों ने शनिवार रात को नोटिस दिया और अगले ही दिन बुलडोजर कार्यवाही कर दी। वे क़ानूनी प्रक्रिया का पालन  तक भी नहीं कर सके। (UP Justice News)

राज्य सरकार की तरफ़ से एटॉर्नी जनरल आर० वेंकटरमणी ने कोर्ट को बताया कि “याचिका कर्ताओं को पहले ही 8 दिसम्बर-2020 को नोटिस भेज दिया गया था। और बाद में जनवरी और मार्च-2021 में भी नोटिस दिये गये।” इस पर कोर्ट ने सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा कि “नोटिस उचित तरीक़े से नहीं दिये गये थे। और प्रभावित लोगों को अपनी बात रखने का अवसर तक नहीं मिला। (UP Justice News)

कोर्ट ने कहा कि “सरकार यह तर्क नहीं दे सकती कि अगर किसी व्यक्ति के पास एक से अधिक घर हैं, तो उसके क़ानूनी अधिकारों की अनदेखी की जा सकती है। हर नागरिक को क़ानून के दायरे में ही न्याय मिलना चाहिये। याचिका कर्ताओं ने स्वयं को ज़मीन का वैध पट्टेदार बताया और कहा कि “उन्होंने इस ज़मीन को फ्री-होल्ड में बदलने के लिये आवेदन किया हुआ था।” (UP Justice News)

उनका कहना था कि “उन्हें 1 मार्च-2021 को नोटिस जारी हुआ था लेकिन इसकी जानकारी 6 मार्च को मिली थी और फ़िर अगले ही दिन यानि 7 मार्च को प्रशासन ने उनके घर गिराने की कार्यवाही शुरू कर दी।” उन्होंने दलील दी कि “उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एण्ड डेवलपमेंट एक्ट की धारा 27-(2) के अंतर्गत उन्हें इस निर्णय को चुनौती देने का अधिकार था। लेकिन प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने का अवसर तक नहीं   दिया। सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस तरह की कार्यवाही को लेकर दिशा निर्देश जारी कर चुका है।” (UP Justice News)

नवम्बर-2024 में कोर्ट ने कहा था कि “बिना पूर्व नोटिस के किसी भी मकान को ध्वस्त नहीं किया जायेगा। नोटिस मिलने के बाद प्रभावित व्यक्ति को कम से कम 15 दिन का समय दिया जायेगा, ताकि वह अपना पक्ष रख सके या क़ानूनी विकल्प अपना सके। इसके अलावा ध्वस्त करने का अन्तिन आदेश जारी होने के बाद भी 15 दिन की मोहलत दी जायरगी, ताकि सम्बंधित व्यक्ति अपने रहने की वैकल्पिक व्यवस्था कर सके अथवा निर्णय के विरुद्ध अपील कर सके। (UP Justice News)

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से स्पष्ट है कि मनमाने ढंग से की जाने वाली बुलडोज़र कार्यवाही पर अब सख़्ती बरती जायेगी। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया है कि, सरकार को क़ानून का पालन करते हुए काम करना होगा, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इस आदेश के बाद अब याचिकाकर्ता अपने घरों का पुनर्निर्माण कर सकेंगे, लेकिन उन्हें कुछ क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। (UP Justice News)

स्रोत: News Track

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